लेखनी प्रतियोगिता -03-Feb-2022 अकाल
जिंदगी की राहों में चलते हुए,
रास्ते मिलते हजार |
कभी भीगी कभी सूखी मिलती सड़क,
जिंदगी में धूप छाँव भी आते जाते |
कहीं बदरा गरजते घनघोर,
कहीं सूखा मचाए हाहाकार |
कहीं अकाल पड़े अपरम्पार,
कहीं अनाज वितरण बारम्बार |
मौसम का कुछ पता नहीं,
कब रूप बदल जाए इसका |
पतझड़ सावन बसंत बहार,
मिजाज इसका बेमिसाल |
कहीं काँटे बिछे राहों में,
कहीं फूल खिले खुशबूदार |
कोई सऺस्कारो का धनी यहाँ तो,
किसी को सम्मान भी करना नहीं आता |
होते बहुत से लोग स्वाभिमानी,
कुछ अहऺकार मे ही मिट जाते |
कभी एक गैर अपना बन जाए ,
कभी अपना ही बैगाना नजर आए |
जिंदगी का फलसफा मुझे,
समझ नहीं आता जनाब |
कहीं सूखी सड़क पर भी,
लोग दुर्घटनाग्रस्त हो जाते |
कही भीगी सड़क होने पर भी ,
मस्ती से चलते जाते |
अकाल मृत्यु से लगे डर,
ईश्वर लो दुख सारे हर |
लोगों का जीना दूभर हो जाता,
अकाल कहाँ किसी को भाता ||
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Sudhanshu pabdey
03-Feb-2022 09:24 PM
Very nice 👌
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Shikha Arora
03-Feb-2022 09:38 PM
Thank u ji🙏
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राजीव भारती
03-Feb-2022 08:37 PM
जी बहुत ही खूबसूरत रचना।
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Shikha Arora
03-Feb-2022 09:38 PM
धन्यवाद आ०🙏
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Swati chourasia
03-Feb-2022 08:12 PM
Very beautiful 👌
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Shikha Arora
03-Feb-2022 09:37 PM
Thank u ji 🙏
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